क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट, वैल्यू इनवेस्टिंग, बॉन्ड यील्ड क्या है? | Qualified Institutional Placement, Value Investing, Bond Yield kya hai

पिछले लेख में हमने आर्बिट्राज, फर्स्ट मूवर एडवांटेज, आरएसआई डाइवर्जेंस के बारेमे जानकारी ली थी। स्टॉक मार्किट की टर्मिनोलॉजी को समजने की इस सीरीज में आज हम क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट, वैल्यू इन्वेस्टिंग और बॉन्ड यील्ड के बारे में जानकारी लेंगे।

Qualified Institutional Placement (QIP) kya hai?

क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (क्यूआईपी) लिस्टेड कंपनियों के लिए स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स से फंड जुटाने का एक तरीका है।

पहले डोमेस्टिक मार्केट से भारतीय कंपनियों के लिए फंड जुटाना काफी कॉम्प्लेक्स प्रक्रिया थी। इसलिए, भारतीय कंपनियां विदेशी बाजारों से फंड उठाती थीं।

QIP से पहले कंपनिया American Depository Receipts (ADRs), Foreign Currency Convertible Bonds (FCCBs) और Global Depository Receipts (GDR) से पैसे इकट्ठे किया जाता था।

इसे रोकने के लिए, SEBI ने 2006 से भारतीय कंपनियों को घरेलू बाजार में आसानी से धन जुटाने में मदद करने के लिए क्यूआईपी मैकेनिज्म की शुरुआत की।

इस प्रक्रिया से फंड रैसिंग आसानी से, तेजी से होती है जिस से कंपनी का समय भी बचता है।

साथ में इसमें लीगल रूल्स आसान रखे गए हैं और यह कॉस्ट एफिशिएंट होने से खर्चा भी कम लगता है।

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Value Investing kya hai?

वैल्यू इन्वेस्टिंग एक ऐसी स्ट्रेटजी है जिसमे निवेशक ऐसे शेयर में निवेश करते हैं जिसकी इंट्रिंसिक वैल्यू या बुक वैल्यू मार्केट में कम हो।

जिसकी इंट्रिंसिक या बुक वैल्यू मार्केट में कम चल रही होती है ऐसे स्टॉक कम मूल्य पर निवेश करने को मिल जाते है।

निवेशक किसी विशेष स्टॉक का सही मूल्यांकन खोजने के लिए विभिन्न मीट्रिक या टूल्स का उपयोग करते हैं।

वे उन शेयरों को टारगेट करते हैं जिसमे उन्हें लगता है कि मार्केट द्वारा उनका वैल्यू नहीं किया जा रहा है और उन्हें इस उम्मीद में खरीदते हैं कि वे भविष्य में उस शेयर की सही वैल्यू मिलेगी।

वॉरेन बफेट को हम एक वैल्यू इन्वेस्टर कह सकते हैं। वह ऐसे ही अंडरवेल्यूड स्टॉक को पसंद करते थे जिसकी मार्केट कीमत अभी कम है लेकिन स्टॉक में दम होता है, उसके फाइनेंशियल, फंडामेंटल्स अच्छे होते हैं और कंपनी में बहुत पोटेंशियल होता है।

ऐसे स्टॉक्स लंबे समय के निवेश में अच्छा प्रॉफिट कमाकर देने का पोटेंशियल रखते हैं। आप भी ऐसा इन्वेस्टमेंट करना चाहते हो तो Zerodha भारत का बेस्ट प्लेटफार्म है जिसमे डीमैट अकाउंट आप यहाँ से खोल सकते हो

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Bond Yield kya hai?

आइए सरल शब्दों में बॉन्ड यील्ड को समझते हैं।

बॉन्ड यील्ड फिक्स्ड रिटर्न है जो एक निवेशक को एक विशिष्ट अवधि के लिए बॉन्ड के लिए मिलता है। इसका कैलकुलेशन एक साधारण कूपन यील्ड के रूप में की जा सकती है या अधिक जटिल कैलकुलेशन जैसे की यील्ड टू मैच्योरिटी का उपयोग करके भी की जा सकती है।

हायर यील्ड यानी कि निवेशकों को अपने बॉन्ड निवेश पर हायर इंटरेस्ट मिलता है लेकिन इसमें जोखिम भी ज्यादा होता है।

उदाहरण के लिए, जब आप 7% की कूपन रेट या इंटरेस्ट रेट के साथ ₹10,000 मूल्य का 10 वर्षीय बॉन्ड खरीदते हैं, तो आपको 700 का वार्षिक रिटर्न मिलेगा।

हालांकि, जब सेकेंडरी मार्केट में बॉन्ड की कीमत गिरकर ₹8,000 हो जाती है, तो रिटर्न भी गिरकर ₹569 तक हो जायेगी।

बॉन्ड यील्ड का बॉन्ड की कीमतों से विपरीत संबंध होता है।

जब कीमतें बढ़ती हैं, तो यील्ड गिरती है, और इसके विपरीत जब कीमतें गिरती है तो यील्ड बढ़ती है।

बॉन्ड यील्ड में तेजी शेयर बाजारों के लिए बुरी खबर है। क्योंकि जब बॉन्ड यील्ड बढ़ता है, तो डेब्ट इंस्ट्रूमेंट इक्विटी की तुलना में अधिक आकर्षक हो जाते हैं और निवेशक डेब्ट में निवेश करने लगता है।

बॉन्ड निवेशकों को निश्चित आय प्रदान करते हैं और यह कम जोखिम वाले और कम वोलेटाइल होते हैं।

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