Burn Rate, Private Equity, Block Deal kya hai?

पिछले लेख में हमने क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट, वैल्यू इन्वेस्टिंग और बॉन्ड यील्ड के बारेमे जानकारी साझा की थी। स्टॉक मार्किट की टर्मिनोलॉजी को समजने की इस सीरीज में आज हम बर्न रेट, प्राइवेट इक्विटी, और ब्लॉक डील के बारे में जानकारी लेंगे।

Burn Rate kya hai?

बर्न रेट यह है कि एक स्टार्टअप कंपनी कितनी तेजी से पैसा खर्च कर रहा है।

यह ज्यादातर स्टार्टअप कंपनियों और निवेशकों द्वारा उपयोग मासिक नकदी की मात्रा को ट्रैक करने के लिए किया जाता है और एक कंपनी अपनी आय उत्पन्न करने से पहले कितना खर्च करती है यह पता चलता है।

बर्न रेट बिजनेस की रियलिस्टिक टाइमलाइन तय करने में मदद करता है और यह भी सूचित करता है कि किसी कंपनी के पास अपना अवेलेबल कैश कितनी जल्दी खत्म हो सकता है या कितना समय है।

एक पॉजिटिव बर्न रेट का मतलब है कि एक कंपनी उसके पास जितना कैपिटल है उससे ज्यादा खर्च कर रही है या जितना रेवेन्यू है उससे अधिक पैसा खर्च कर रही है।

मुख्यतौर पर दो प्रकार के बर्न रेट होते हैं। एक नेट बर्न रेट और दूसरा ग्रॉस बर्न रेट।

ग्रॉस बर्न रेट वह है जो किसी एक कंपनी का कुल राशि का हर महीने का टोटल ऑपरेटिंग कॉस्ट होता है।

नेट बर्न रेट एक कंपनी का टोटल अमाउंट है जो वह हर महीने लॉस करती है।

इससे बचने के लिए कंपनी को लागत में कटौती करनी चाहिए या रेवेन्यू में वृद्धि करनी चाहिए।

बर्न रेट की गणना कैश को मासिक ऑपरेटिंग खर्च को करके की जाती है।

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Private Equity (PE) kya hai?

प्राइवेट इक्विटी (PE) निवेश का एक वैकल्पिक तरीका है जिससे निवेशक सीधे निजी कंपनियों में निवेश करते हैं जो पब्लिक स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड नही है।

प्राइवेट इक्विटी में निवेश ज्यादातर प्राइवेट फर्म या कंपनी में आम तौर पर पार्टनरशिप के रूप में किया जाता है।

इसमें निवेश का पैसा मुख्यरूप से बड़े बड़े इंस्टीट्यूशन या हाई नेट वर्थ वाले इंडिविजुअल से आता है।

प्राइवेट इक्विटी में निवेश का रिटर्न पब्लिकली लिस्टेड कंपनी से अच्छा होता है लेकिन साथ में निवेश भी बहुत बड़ा करना होता है।

प्राइवेट इक्विटी में निवेश करने की बहुत सारी स्ट्रेटजी है लेकिन मुख्यरूप से दो स्ट्रेटजी है।

एक लेवरेज बायआउट (LBOs) और दूसरी वेंचर कैपिटल (VC) इन्वेस्टमेंट।

ऐसी प्राइवेट कंपनी में निवेश पार्टनर आमतौर पर लंबी अवधि के लिए करते हैं जो 10 या अधिक वर्षों की होती है।

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Block Deal kya hai?

जब किसी भी लिस्टेड कंपनी में मिनिमम ₹5 करोड़ या पांच लाख शेयर की लेनदेन होती है तो उसे ब्लॉक डील कहते हैं।

ब्लॉक डील आम तौर पर म्यूचुअल फंड या बीमा कंपनियों जैसे इंस्टीट्यूशनल निवेशकों के बीच होती हैं।

ब्लॉक डील और बल्क डील में थोड़ा सा ही अंतर है जो समझना जरूरी है।

ब्लॉक डील में मिनिमम 5 लाख शेयर या 5 करोड़ रूपए की बाय या सेल होती है जो नॉर्मल ट्रेडिंग विंडो की जगाए सेपरेट विंडो में होती है जिसका समय आमतौर पर 9:15 से 9:45 होता है।

बल्क डील में लिस्टेड कंपनी के कुल शेयर के 0.5% के ज्यादा की लेनदेन होती है जो नॉर्मल ट्रेडिंग विंडो में होती है जिसका पता सबको रहता है।

जो भी इन डील्स को मैनेज करते हैं उसे एक्सचेंज को सभी डीटेल्स देनी पड़ती है।

किसी भी स्टॉक में बड़े निवेशकों की भावनाओं और रुचि को देखने के लिए अन्य निवेशक अक्सर ब्लॉक डील्स को ट्रैक करते हैं।

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