पिछले लेख में हमने बर्न रेट, प्राइवेट इक्विटी, और ब्लॉक डील के बारेमे माहिती साझा की थी। स्टॉक मार्किट की टर्मिनोलॉजी को समजने की इस सीरीज में आज हम हेज फंड, मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स और शॉर्ट सेलिंग के बारे में माहिती लेंगे।
Hedge Fund kya hai?
हेज फंड एक ऐसी निवेश रणनीति है जिस से अलग अलग स्ट्रीटेजिस का उपयोग करके मार्केट की तुलना में अधिक रिटर्न प्राप्त किया जाता है।
मार्केट में वोलेटिलिटी के चलते अपने निवेश का रिस्क कम करने के लिए ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी हेज फंड का इस्तेमाल किया जाता है जो फिर से रिस्की है।
आम तौर पर, हेज फंड में हाई मिनिमम निवेश की जरूरत होती है। इसीलिए ज्यादातर यह स्ट्रेटजी हाई नेटवर्थ व्यक्तियों द्वारा और इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स द्वारा उपयोग की जाती है।
हेज फंड ट्रेडिशनल निवेश फंड की तुलना में अधिक फीस लेते हैं।
हेज फंड में जोखिम भरी रणनीतियां जैसे कि लेवरेजिंग, डेरिवेटिव्स जैसे कि ऑप्शन और फ्यूचर्स का उपयोग किया जाता है।
मुख्यरूप से चार प्रकार के हेज फंड होते हैं जैसे कि…
ग्लोबल मैक्रो हेज फंड, इक्विटी हेज फंड, रिलेटिव वैल्यू हेज फंड और एक्टिविस्ट हेज फंड।
हेज फंड में इन्वेस्टमेंट गोल के हिसाब से तरह तरह की स्ट्रेटजी इस्तेमाल होती है जैस की इवेंट ड्रिवन हेज फंड स्ट्रेटजी, लॉन्ग एंड शॉर्ट टर्म स्ट्रेटजी, फिक्स्ड इनकम हेज फंड स्ट्रेटजी आदि।
हेज फंड और म्यूचुअल फंड में अंतर है जैसे कि म्यूचुअल फंड रेगुलेटेड है और इसमें फीस भी कम लगती है। वहीपर हेज फंड स्ट्रिक्टली रेगुलेटेड नहीं होते हैं।
Manufacturing Purchasing Manager’s Index (PMI) kya hai?
मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) एक इंडिकेटर है जो किसी भी देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ग्रोथ कैसा है वह दिखाता है।
पीएमआई कंपनियों के परचेसिंग मैनेजर्स के सर्वेक्षण पर आधारित है जिसमें कई सारे क्राइटेरिया रहते हैं जैसे कि नए ऑर्डर, आउटपुट, रोजगार, इन्वेंट्री, सप्लायर का डिलीवरी टाइम आदि।
जब पीएमआई 50 से ऊपर होता है तो वह किसी भी कंपनी या देश के विस्तार या विकास को दर्शाता है।
और जब पीएमआई 50 से नीचे होता है तो उसका मतलब है कि मैन्युफैक्चरिंग में कॉन्ट्रक्शन है।
व्यापारी और निवेशक पीएमआई को ट्रैक करते हैं क्योंकि यह किसी भी कंपनी या देश की व्यावसायिक परिस्थितियों में बदलाव को दर्शाता है और साथ में यह शेयर बाजारों की मूवमेंट को भी प्रभावित कर सकता है।
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Short Selling kya hai?
जब आपको लगता है कि किसी भी शेयर या डेरिवेटिव की कीमत में गिरावट आएगी तो आप उसे सेल करते हो तो उसे शॉर्ट सेलिंग कहते हैं।
हम सामान्य ट्रेड में पहले किसी भी शेयर या डेरिवेटिव को खरीदते हैं और बाद में बेचते हैं।
लेकिन शॉर्ट सेलिंग में आप उसे पहले बेचते हैं और बाद में खरीदते हैं।
इक्विटी सेगमेंट में केवल इंट्राडे में ही शॉर्ट सेलिंग की जा सकती हैं।
लेकिन डेरिवेटिव सेगमेंट यानी कि फ्यूचर्स और ऑप्शन में ओवरनाइट शॉर्ट सेलिंग की पोजीशन बनाई जा सकती है।
शॉर्ट सेलिंग में अगर डेरिवेटिव या स्टॉक की कीमत गिरती है, तो आपको लाभ होगा, जबकि यदि कीमत बढ़ती है, तो लॉस होगा।
शॉर्ट सेलिंग हाई रिस्क-रिवार्ड ट्रेडिंग स्ट्रेटजी है जिसमे प्रॉफिट की संभावना ज्यादा है, लेकिन अगर लॉस होता है तो वह अनलिमिटेड हो सकता है।